तीन आतंकवादियों को मारा है क्या मुझे जीव हत्या का पाप लगेगा | Premanand Ji Maharaj Pravachan

कुलदीप सिंह जी हरियाणा से, राधे-राधे महाराज जी ! आपके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम! महाराज जी मैं हवलदार कुलदीप सिंह आर्मी में हूं मैं दो अलग-अलग आतंकवादी घटनाओं में तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को जम्मू एवं कश्मीर में रहते हुए अपने देश के सेवा में मार गिराया। इसके लिए मुझे राष्ट्रपति भारत के तरफ से बहादुरी के लिए मेडल मिला। महाराज जी अब मुझे कई बार बोध होता है कि मैंने जीव हत्या की है क्या मुझे इस जीव हत्या के पाप लगेगा ?

प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन-

1- मैंने तीन आतंकवादियों को मारा है क्या मुझे जीव हत्या का पाप लगेगा-

महाराज जी के कथित वचनों में—- बिल्कुल नहीं ,कोई पाप नहीं लगेगा! ना इस लोक में, ना परलोक में ,जब महाराज युधिष्ठिर जी भगवान श्री कृष्ण जी को संधि के लिए भेजने की तैयारी करते हैं तब कहते हैं कि वही उपाय करना जिससे हम अपने बंधुओं का विनाश ना करें, क्योंकि कौरव भी हमारे बंधु ही है ।तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा जो पापी हैं ऐसे पुरुष के मारने से पुण्य की प्राप्ति होती है। तो इस बात को सोचो भी मत बल्कि आनंदित हो जाइए, कि भगवान ने हमारे द्वारा जो लाखों लोगों को कष्ट देते थे उनको मार कर हम निर्दोष प्राणी को बचाया है और ऐसे दुष्टों को मरवाया है।

“परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्टकृताम।,,

तो तुम भगवान के पार्षद हो, भारत सेवा के अधिकारी हो ,इसमें सोचना नहीं क्योंकि अत्याचार का बढ़ावा देना यह धर्मविरुद्ध होता है। भगवान ने भी कहा है अत्याचारी का वध करने से निश्चित ही उसे पुण्य प्राप्त होता है। जैसे अधर्मी राजा जब बढ़ गए तो परशुराम जी काट-काट कर ढेर लगा दिए थे । तो कोई पाप नहीं है यह बहुत अच्छा कार्य है देश के लिए भी और भागवत का कानून में भी कोई अपराध नहीं है।

2- जब सामने वाला गलत पर गलत कर रहा है तो उसमें भगवान का रूप कैसे देखें

सनी गुप्ता जी राधे राधे महाराज जी! आपके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम! महाराज जी मैं पिछले कुछ महीनो से निरंतर आपका वीडियो देख रहा हूं, जिससे मैं अपने जीवन में काफी सुधार भी किया है ।और शिवजी की कृपा से मुझे दूसरी बार वृंदावन आने का अवसर मिला। महाराज जी! दूसरों में भगवान का रूप देखकर किसी पर गुस्सा ना करने की कोशिश नाकाम सी हो रही है तो क्या करूं? कृपा मार्गदर्शन करें।

महाराज जी के कथित वचनों में—- धीरे-धीरे अभ्यास करिए अभी यह बहुत ऊंची स्थित है। जैसे मान लो हम एक दो कक्षा में पढ़ रहे हैं। और हमें पी. एच. डी. वाली बात सुनने को मिल गई, तो हमको दिमाग में रखना है कि हमें पहुंचना है यहां पर ,आज हम उसे नहीं धारण कर पाएंगे क्योंकि ऐसी हमारी स्थिति नहीं है।

भगवान सब में है, पर पर्दा लगा हुआ है माया का, सतोगुण ,रजोगुण, और तमोगुण ।हम जो देख पा रहे हैं। उस पर्दे को देख पा रहे हैं जिस पर्दे में तीन प्रकार की क्रियाएं हो रही हैं। एक सात्विक, जो अच्छी है । एक राजसिक , जो थोड़ा अच्छी और थोड़ा गंदी । एक तामसिक ,जो घोर हिंसात्मक, घोर पापात्मक है ।

तो हम कैसे भगवान देख पाएंगे। जो ऐसा निंदनी कर्म कर रहा है, जो ऐसा नीच बोल रहा है ,जो ऐसा नीच खा रहा है यह तमोगुण दिखाई दे रहा है। तो उसमें पर्दा लगा है भगवान नहीं दिखाई दे रहे हैं ।तीन गुणों का ऐसा पर्दे पर फोकस चल रहा है। जैसे फिल्म में होता कुछ नहीं है, बस पर्दे पर फोकस चल रहा होता है ।पर्दे में ना कोई व्यक्ति है, ना कोई नगर है, फिर भी चल रहा है ऐसे हमारे जीवन पर भी तीन गुणों का प्रकाश पड़ रहा है सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण।

तो त्रिगुणात्मक माया इस भगवान को, इस ब्रह्मा को, एक विविध रूप में पर्दे में दिखाई दे रहा है। यह मेरा बच्चा है ,यह मेरी स्त्री है ,यह मेरा पुरुष है ,यह मूर्ख है, यह विद्वान है, यह संत महात्मा है, यह दुरात्मा यह नीचे पाखंडी है, यह उत्तम है, यह माया रूपी पूरी फिल्म तैयार है।

जब सिनेमा में फिल्म देखन कोई जाता है। तो पहले तुम निश्चय कर लेते हो कि यह झूठी कहानी है ।पर हम मनोरंजन के लिए आए हैं ।तो क्या इस माया नगरी को भी तुम झूठी कहानी ही समझ रहे हो? नहीं इसे तो आप सत्य मान रहे हैं, कि मैं पुरुष सत्य हूं, यह स्त्री सत्य है, यह बच्चा सत्य है ,यही है माया। अगर इसका पर्दा हट जाए तो आप देख लोगे कि एक मात्र सत्य प्रभु नाम ही है।

दूसरा कोई नहीं है, इसी पर्दा को हटाने के लिए ही तो साधना की जाती है। इसके लिए विचलित नहीं होना चाहिए। धीरे-धीरे हमने संत वचन सुनना किया ,हमने मनाना शुरू किया ,वही संत संग हमें वहां तक भी पहुंचा देंगे। क्योंकि वह बहुत सामर्थ शाली हैं। तो आप इसमें विचलित नहीं होने देना, अपने को और व्यवहार में कभी कमी नहीं होने देना।

जैसे आपका पुत्र है वह गलत कर रहा है। तो इसमें यह भाव देखना कि जैसे पुत्र शब्द कहा है ,तो इसे डांटना हमारा अधिकार है। भगवत भाव के साथ अगर आपका पूर्व का पाप है और अभी तक दंड नहीं मिला है। तो वह आपको फंसा देगा। बल्कि आप इस समय निर्दोष है पर आप फंसते चले जा रहे हैं। तो यह वह पाप है जिसे कोई जान नहीं पाया, और आपसे हुआ वह सुरक्षित रखा रहा अब आपको दंड दे रहा है।

इसलिए चुपचाप सह जाओ। और भगवान से प्रार्थना करो कि हमें बचा आप ही सकते हो, और आप जानते हो यह मेरी गलती का ही फल है। जो मुझे दंड के रूप में मिल रहा है, और अगर कोई पाप नहीं है ना पूर्व में और ना अब, तो लाख कोई कर ले आपको कोई फंसा नहीं पाएगा। अगर आप धर्म से चल रहे हैं आपका पक्ष धर्म है। तो उसके पुण्य नष्ट हो रहे हैं ,और आपका पाप नष्ट हो रहा है, आप खुद को शांत रख कर प्रभु का नाम जाप करके अपने को बचा लो। जो गलत पर गलत किया जा रहा है वह खुद धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगा।

।।जय श्री राधाबल्लभ हरिवंश।।

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