वैवाहिक जीवन में ब्रह्मचर्य के नियम और मंगल | Premanand Ji Maharaj Pravachan

महाराज श्री प्रेमानंद जी के दरबार में आये एक साधक ने कहा महाराज जी ! वैवाहिक जीवन में ब्रह्मचर्य के क्या नियम है ? संतान प्राप्ति के सिवा भोग पाप है, ऐसा सुना है परंतु धर्पमत्नी नियम पालन करने में साथ ना दे तो क्या करें? कृपया मार्गदर्शन करें।

प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन

वैवाहिक जीवन में ब्रह्मचर्य के नियम

महाराज जी! के वचनों में-महाभारत के ग्रंथ शास्त्र में जिनका पाणिग्रहण संस्कार हो गया है वह अपनी पत्नी के साथ भोग कर सकता है । जब पत्नी मासिक धर्म से युक्त होकर सात दिन बाद पवित्र हो जाए, फिर पवित्र तिथियों को त्याग कर जैसे -एकादशी या पूर्णिमा ,या भागवत जन्म उत्सव है ,कृष्ण जन्माष्टमी है, राधा अष्टमी, रामनवमी, नवदुर्गा आदि इन पवित्र तिथियों को त्याग कर महीने में एक बार संतान प्राप्ति के भाव से भोग कर सकते हैं। ऐसा हमारा शास्त्र कहता है । तो जितना अधिक दोनों मिलकर संयम कर सको उतना अच्छा है पर जब तक मासिक धर्म से युक्त माताएं- बहनें रहती है। तब तक स्पर्श भी ना करें उसे उस भाव से।

तो वह पवित्र भी रहेंगे और उनका शरीर स्वस्थ भी रहेगा। और संतान उत्पत्ति के लिए भी मंगलमय माना गया है। जैसे संतान हो गई है और अभी हमारी कामवासना शांत नहीं हुई है तो अन्य की तरफ ना देखें धर्म से चलेंगे ,और खुद आपको अनुभव हो जाएगा कि इसमें कुछ सुख नहीं है । गृहस्थी में रहने का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे लिए लाइसेंस मिला है कि तुम अपना जीवन नष्ट कर दो ,तुम्हारा पाणिग्रहण हुआ है दोनों मिलकर साथ चलो।

और लंबे समय तक ब्रह्मचर्य बनाओ ।और फिर गृहस्थ धर्म में उतरो, फिर देखोगे ब्रह्मचर्य निष्फल नहीं जाएगा। तेजस्वी, धर्मात्मा, बलवान पुत्र पैदा होगा । अगर आप ब्रह्मचर्य का संग्रह नहीं करोगे कि हम तो गृहस्थ हैं तो आप देखोगे कि आप जितनी बार ब्रह्मचर्य क्षय करोगे, उतना विचार आपका क्षीण होते चले जाएंगे।

शारीरिक शक्ति और विचार शक्ति दोनों आपकी कमजोर होती चली जाएगी। आप खुद अनुभव करना जब ब्रह्मचर्य रहता है शरीर रोग से ग्रसित हो तो भी विचार शक्ति इतनी बलवान होती है कि शरीर शक्ति की क्षीण होने पर भी वह प्रसन्न रहता है।

गृहस्थ धर्म में रहकर मंगल कैसे हो

अगर आप नौकरी कर रहे हो तो भगवान को अर्पित कर दो ,कार्य करते रहो और बीच-बीच में नाम जाप का अभ्यास भी करते रहो। पर यह तभी कर सकते हो जब मांस नहीं खाओगे, शराब नहीं पियोगे, पर स्त्री गमन नहीं करोगे, गंदी बातों से बचोगे। तब कर सकते हो। नहीं तो सुन लोगे पर कर नहीं पाओगे। गंदे आचरण करने वाला कभी भी आध्यात्मिक की चेष्टाएं नहीं कर सकता।

अंतःकरण की पवित्रता होनी चाहिए, विचार की पवित्रता, शरीर की पवित्रता होनी चाहिए।तभी इस पावन मार्ग पर चल कर पवित्र भगवान का भजन कर पाओगे। और सभी अनुभूति कर पाओगे। जब गंदे गंदे भोजन करोगे, गंदे गंदे दृश्य देखोगे, गंदी-गंदी विचार धाराएं करोगे, और सोचोगे कि भजन कर ले ऐसा नहीं है।

अच्छे आचरण करो, भगवान के आश्रित रहो, नाम जप करो, जो गति एक मुनि को मिलती है वही गति आपको भी मिलेगी। क्योंकि भगवान के दो मार्ग हैं, एक प्रवृत्ति, एक निवृत्ति। प्रवृत्ति आपका मार्ग है ,निवृत्ति भजन मार्ग है ।

जैसे चार रोटी बनाकर एक रोटी उसमें से निकाल दो। गाय को दे दो या चिड़ियों को खिला दो, या कोई साधु महात्मा भूखा आया है उसको खिला दो, उसी से भगवत प्राप्ति के मार्ग बनने लगेंगे। जितने भी संत प्रकट हुए हैं वो सब गृहस्थी से आए हैं ।

उनके माता-पिता गृहस्थ ही थे। उनका भरण पोषण, भोजन गृहस्थ से हुआ है, जो वस्त्र धारण किया है गृहस्थी से आया है, जो हमें आदर सम्मान से भिक्षा दे रहा है क्या उसका कल्याण नहीं होगा ? अगर वह स्वयं थोड़ा भजन कर लेता है और ऐसे सत्कर्म करता है, तो आगे गति को प्राप्त करेगा।

1 thought on “वैवाहिक जीवन में ब्रह्मचर्य के नियम और मंगल | Premanand Ji Maharaj Pravachan”

  1. Maharaj ji mein job bhi karti hu or grishsth bhi hu. Maharaj ji job ke liye bahot padhna hota hai aage badhne ke liye job krte krte to bramhachrya nahi ho pata. Mera aim hai bhagwaan praapti karna. Please meri dincharya bata dijiye maharaj ji.

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