प्रारब्ध का फल तो अवश्य भोगना पड़ता है Premanand Ji Maharaj Pravachan में जीव के कर्म पर जोर देते है प्रारब्ध का अर्थ है पूर्व जन्म में किये गए अच्छे-बुरे कर्मो का फल भोगना
दरबार में आईं एक मां ने गुरुदेव से प्रश्न किया कि इस बच्चे ने (उसके पुत्र) क्या पाप किया जो इसे कैंसर हो गया।
प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन
जो मां हैं उन्हें शायद हमारी बात ना समझ में आए लेकिन यह शरीर तो नया है इसका, लेकिन जीव तो पुराना है ना जाने कौन से कर्म का फल मिला है इसको ! यह तो भगवतलीला है। इस पर किसी का कोई अधिकार नहीं ! इस बच्चे का क्या प्रारब्ध है, नई अवस्था है अभी तो नया कोमल बच्चा है लेकिन अंदर जो जीव है वह बहुत पुराना है।
उससे कौन-कौन से कर्म हुए हैं उसका परिणाम इस नवीन शरीर को भोगना पड़ रहा है। इस शरीर में आते ही कैंसर हो गया। यह अवस्था बच्चा है अभी इस समय तो इसके द्वारा कोई पाप नहीं हुआ है। और माना भी नहीं जाएगा । क्योंकि 14 वर्ष की अवस्था तक शास्त्रीय सिद्धांत है कि इसके किए हुए पापों को गणना में नहीं किया जाता। क्योंकि बच्चा अबोध होता है ।
जीव पुरातन है प्रारब्ध का फल
लेकिन इस जन्म में इतना भयानक कष्ट कैंसर मिला। इसलिए कहते हैं भजन करो नहीं तो इस जन्म का कर्म कई जन्मों तक दंड रूप में भोगना पड़ेगा। अभी तो तुम्हें मांस खाना अच्छा लग रहा है, बुरा आचरण करना अच्छा लग रहा है, दूसरे जीव की हत्या करना अच्छा लग रहा है, जब तुम्हारा शरीर छूटेगा फिर उस समय दंड मिलेगा। अभी यह बच्चा रूप में तुम्हें दिखाई दे रहा है लेकिन यह दंड तो इसका पुरातन है ।
भगवान कभी किसी के साथ अमंगल नहीं करता। इसके पुरानी गलतियों का यह खेल है। मां को तो इसको अपना बच्चा मानकर लगता है कि कुछ ऐसा हो जाए कि यह ठीक हो जाए। बस नाम जप करो, भगवान के आश्रित रहो ! इसका नाम मृत्युलोक है। यहां जो हम कर्म करते हैं वह संचित होता है। उसी के अनुसार नया शरीर मिलता है। और वह दंड या पुरस्कार, सुख या दुख, भोगना पड़ता है ।
इसलिए इसे मुक्त होना अनिवार्य है । भगवान के भजन इसलिए है कि तुम्हारे जो बुरे कर्म है वह भस्म हो जाए। तुम मां हो इसके लिए बस एकमात्र नाम है राधा राधा नाम का जप। धैर्यपूर्वक करो सब उनके भरोसे छोड़ दो, जो कुछ होगा सब मंगल होगा।।
राधा राधा।।
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