प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों में अक्सर संकेत करते है कि, साधक कैसे जाने की उसकी साधना की सही दिशा और दशा क्या है? और फिर भी भगत-जन बार-2 प्रश्न करते है और प्यारे गुरूजी बार-2 समझाते है राधे राधे
फरीदाबाद से आये महेश यदुवंशी जी गुरुदेव के चरणों में प्रणाम ! करते हुए पूछते है कि साधक कैसे जाने की उसकी साधना सही दिशा और दशा में है? उस पर प्यारे गुरुदेव महाराज कहते है
Premanand Ji Maharaj Pravachan
निरंतर भगवान नाम का जाप करते हैं तो किस अवस्था में होते हैं। यहां जो कुछ भी ब्रह्मा के द्वारा रचा गया है, त्रिगुण के अंतर्गत है। वस्तु, व्यक्ति, स्थान जो भी है।
मैं और मोर -तोर ते माया, जेहि बस किन्हें जीव निकाया
गो गोचर जहँ लगि मन जाई, सो सब माया जानेहु भाई
यह सब माया का स्वरूप है। जो जितना कुछ दिखाई दे रहा है, जितना कुछ मन से सोचा जा रहा है, वह सब माया है। पर यह निर्गुण में माया भरी है भगवान देह स्वरूप होकर प्रकट हुए हैं । तो भगवान का नाम, भगवान का रूप ,भगवान की लीला, भगवान का धाम ,यह सच्चिदानंद है। यह माया में नहीं हैं।
“चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी॥”
“सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे”
इन्हीं से विश्व की उत्पत्ति ,पालन और सृजन होते हैं ये तीन गुणों के तीन अधिष्ठार्त देवता है। सतों गुण में भगवान विष्णु, रजोगुण में भगवान ब्रह्मा ,और तमोगुण के अधिष्ठार्त भगवान शंकर हैं। यह त्रिगुण में माया त्रिगुणामई सृष्टि, त्रिगुणामई क्रियाएं, पालन हो सृजन हो यह लीला चल रही है ।
इससे परे हैं भगवान और इसी में भरे हैं भगवान। वासुदेव की इच्छा से ही यह त्रिगुण में माया प्रगट हुई है । उसी में पूरे त्रिभुवनानन ब्रह्मांडों का विस्तार हुआ है। और वही वासुदेव है । और जो सब में रमा हुआ है वह भी वासुदेव हैं। यह जानने के लिए पहले त्रिगुण में माया के द्वारा रचित जितना भी कार्य है पहले इसका चिंतन छूटे।
साधना की सही दिशा
भगवान ने कहा अब हमारे पास बचा है, त्रिगुण पति भगवान का नाम, त्रिगुणामई भगवान की लीला, त्रिगुणामई भगवान का धाम, राम जी का साकेत धाम, वृंदावन धाम ,महादेव का कैलाश धाम, भगवान के विविध धाम यह त्रिगुणातीत है। यह माया के द्वारा या ब्रह्मा के द्वारा रचित नहीं है।
उनके निज धाम, निज नाम ,निज रूप ,और निज लीला यह मायातीत है। अब हम नाम का जाप कर रहे हैं निरंतर लीलाओं का गायन श्रवण कर रहे हैं, भगवान की सेवा भावना से सबमें जो बसा हुआ है उसकी आराधना कर रहे हैं, कर्तव्य मान करके पत्नी, पुत्र, परिवार जो भी है । जिसका जो व्यवहार है । ठीक वैसे ही संयम के अनुसार व्यवहार नहीं बिगाड़ना चाहिए।
जिसके साथ जो संबंध है वैसे ही व्यवहार और अंदर से भाव रखिए यह मेरे प्रभु हैं । तो यह त्रिगुण संसार में रहते हुए भी आप त्रिगुण माया के परिणाम का जो दुख है, जन्म मरण, जो भी हैं यह आपको नहीं प्राप्त होगा। नाम त्रिगुणामई है, भगवान का रूप त्रिगुणामई है भगवान की लीला त्रिगुणामई है, तो अब हम भोजन क्या करें। यह तो माया का है। तो पहले भगवान को पवावो अब जो पाया वह त्रिगुणातीत हो गया। क्योंकि भगवान को अर्पित किया तो प्रसाद हो गया।
वस्त्र जो नए आए पहले प्रभु को स्पर्श कर दें, ऐसे हम त्रिगुणातीत होते हैं । हमारा देखना, सुनना, खाना पीना ,चलना सब भागवत संबंध से जुड़ गया। अब हम माया मुक्त हो जाएंगे। हमारा यह सब माया में जुड़ गया अब हम जन्म मरण से मुक्त हो जाएंगे। यह भक्ति का सबसे सहज सरल साधन है। जिससे हम मंगल को प्राप्त हो जाएंगे ।
।।।राधे राधे।।।