Premanand Ji Maharaj Pravachan करते हैं तो लगता है जैसे जन्म की प्यास बुझ रही है जीवन का सही अर्थ क्या है ये पता चलता है, महाराज Shri Hit Premanand Ji Maharaj के दरबार में आयीं श्रीमती साधना वाजपेयी जी कहती है राधे-राधे महाराज जी ! आपके चरणों में प्रणाम ! महाराज जी जब से हम बीमार पड़े हैं तब से मुझे अपने दोनों बच्चों के बारे में सोचकर मृत्यु से बहुत डर लगता है। कि मां का कर्तव्य पूरा कर पाऊंगी या नहीं?
Premanand Ji Maharaj Pravachan
Premanand Ji Maharaj Pravachan प्रवचन में कहते है, वैसे हम भगवान की कृपा से कभी डरे नहीं। हां सोचना तुम्हारा व्यावहारिक ठीक है लेकिन परमार्थिक ठीक नहीं है । वह अनंत महिमा वाला भगवान पूरी सृष्टि का पालन पोषण कर रहा है तुम्हारे बच्चों का भी पालन पोषण करेगा।
देखो बचपन से निकले तो 13 वर्ष की अवस्था थी । आज तक वही पालन पोषण करते रहे, ना हमारे खाने की व्यवस्था थी, ना रहने की व्यवस्था थी ,ना कोई हमारा मित्र था, ना कोई स्थान । पूरा लंबा जीवन भ्रमण करते रहे। वह परमात्मा ही हर जगह मुझे दुलार करते मिले।
सहने का विधान बनाये
कभी कभी किसी ने मुझसे उद्दंडता भी किया तो मुझे अंदर से उपदेश मिला सहो और सुनो ! यह सब तुम्हारे अंदर के अहंकार को मिटाने के लिए मैंने भेजा है। मैंने नमस्कार किया कहा आपने जो कुछ दिया और जो कुछ भेजा है वह विधान अमृत के समान है। अगर हम सोचते हैं कि हम ही बच्चों का पालन पोषण करते हैं तो व्यवहारिक तो ठीक है, लेकिन आध्यात्मिक बात ठीक नहीं है। क्योंकि सबका भरण पोषण भगवान करते हैं। गर्भ में आप क्या व्यवस्था भरण पोषण कर रहे थे।
गर्भ के बाद जब बाहर आया तो बिना किसी प्रयास के उसके पोषण के लिए स्तनों में दूध आ गया। कितना गर्म, कितना मीठा, कितना उसको चाहिए। वह सब पहले से व्यवस्थित है तो वह पीकर हष्ट पुष्ट रहता है । विचार करो गर्भ के बाहर आने पर भोजन व्यवस्था कर दी ना। तो उसको पीना किसने सिखाया वह छोटा बच्चा है उसको सिखाना थोड़ी न पड़ा है ।
ईश्वर पर विश्वास करें
वह तो बहुत सर्वज्ञ प्रभु है । जिस समय जैसी व्यवस्था चाहिए वैसी व्यवस्था की है। विश्वास करो तुम्हारे ना होने पर भी तुम्हारे बच्चों की वैसी उन्नति, वैसी भरण पोषण जैसा तुम्हारे रहने पर होता है वैसे तुम्हारे ना रहने पर भी प्रभु संभाल लेंगे। और जो दुर्गति होनी होगी वह तुम्हारे होने पर भी हो जाएगा। वह तुम संभाल नहीं पाओगे ।जो सद्गति होनी है फिर चाहे उसके विरोध में खड़ी हो जाओगी फिर भी उसकी उन्नति हो जाएगी।
एक दृष्टांत हम सुनते हैं यहां से !
एक ओझा जी थे वह महाभागवत थे उनका ब्याह हुआ एक संतान हुई पत्नी का प्रसव पीड़ा में बहुत कष्ट होता है । उसका रोना चिल्लाना यह सब सुनकर के जब प्रसव हो गया बच्चा कुछ समय का हो गया। तो उन्होंने कहा जीवन में मैं दोबारा गर्भधारण करने की चेष्टा नहीं करूंगा । क्योंकि बहुत कष्ट होता है। और अब मैं ऐसे संसार में विरक्त भाव में रहकर भजन करना चाहता हूं । अब और नहीं? पत्नी से प्रार्थना की कि तुम्हारा पाणिग्रहण किया है इसलिए हम तुमसे अनुमति मांगते हैं। या हमारे साथ चलो या घर में सब सुख सुविधा है, बच्चा है, पालन पोषण करो ! पर मैं विरक्त होकर भगवान का आज से भजन करूंगा ! यदि आप कहती हो पाणिग्रहण किया है तो, हमारे हाथ में हाथ मिलाओ और चलो। जैसे मैं रहूंगा वैसे रहना होगा पर साथ में कुछ नहीं, भजन करना होगा उन्होंने कहा मैं आपके बिना रह ही नहीं सकती। मैं भी आपके साथ चल रही हूं। तो चलिए !
जब गांव के बाहर निकले जंगल में पहुंचे तो देखा थोड़ी धीमी चाल है उन्होंने कहा जल्दी से आओ ! तो देखा गोद में बच्चा है। उन्होंने कहा की बोला ना हमारे साथ अन्य कोई नहीं चलेगा। सिर्फ आपकी अनुमति है। आप बच्चा लेकर क्यों चल रही हैं । पत्नी बोली यह नवजात शिशु है उसको कहां छोड़ें इसको कौन पालेगा, इसका भरण-पोषण कौन करेगा, उन्होंने कहा सब जीव जंतुओं का पालन पोषण कौन करता है। वही भगवान, तो या तो वापस चली जाओ या यह बच्चा यही छोड़ दो। फिर बोली कैसे छोड़ दूं । भगवान के भरोसे छोड़ दो ! या फिर बोल रहा हूं वापस चली जाओ। पर पत्नी अपने पति को भगवान मानती थी छोड़ दिया बच्चा।
बारह वर्ष तक भजन कीर्तन एकांत में भ्रमण किया । जब उन्होंने अपने पत्नी के तरफ देखा तो सोच रही थी कि क्या हुआ होगा मेरे बच्चे का तो उन्होंने कहा चलो आज तुम्हारे अंदर जो बार-बार प्रश्न रहता है उसका उत्तर दिला देते हैं। अपने गांव में आए बाहर बैठ गए बारह वर्ष में लंबे लंबे बाल दाढ़ी की वजह से कोई पहचान नहीं पाया तो उन्होंने गांव वालों से पूछा तुम्हारे गांव में एक ओझा जी थे जो संत महंत बन गए उनकी कोई संतान थी क्या आपको पता है वो कहा है ।
उन्होंने कहा अरे भाई उनके क्या भाग्य हैं ओझा जी के जाने के बाद यहां के जो राजा जी उन्हें ढूंढने के लिए घुढ़सवारी की तो वो नहीं मिले। लेकिन उनका बेटा जंगल में मिला। राजा जी को कोई संतान नहीं था तो उसे अपना बेटा मान कर अपने पास रख लिया उसको युवराज पद पर बिठा दिया।
ईश्वर सर्व रक्षक और विश्व के माता-पिता है
उन्होंने पत्नी से कहा घर में रहते हम गरीब किसान थे क्या बना पाते अपने बच्चें को। लेकिन भगवान के हुए तो क्या बन गया। युवराज ! और आगे चलकर वही राजा बनेगा । अब चिंता मत कर चुपचाप भजन कर। ना कोई जंगली पशु पक्षी खा पाया बच्चे को, ना कोई हानि पहुंची, और सर्व रक्षक भगवान हैं। हां तुम मां हो तुम्हारा सोचना ठीक है पर वह मोह के कारण भगवान पूरे विश्व के माता-पिता हैं।
तुम्ही हो माता चा पिता तुम्ही।।
वह विश्व का भरण पोषण कर रहे हैं देखो जंगल में कितने सुंदर-सुंदर पशु पक्षी रहते हैं कोई उनकी दवा करने वाला नहीं हष्ट पुष्ट रहते हैं।
रहिमन बहु भेषज करत, व्याधि न छाँड़त साथ।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ।।
उनकी कौन दवा करता है कौन देखता है उन्हें तो बस भगवान देखते हैं तो आपकी संतान को भी भगवान ही देखेंगे वही भरण-पोषण करेंगे। इस बात से डरो मत भजन परायण रहो जब तक सांस है तब तक उनकी सेवा करते रहो और जहां तक तुम्हारी सेवा है संपूर्ण, भगवान के चरणों में समर्पित कर दो। भगवान अब आप देखना । हम तो आपके विधान के अनुसार जा रहे हैं लेकिन यह जो सेवा है आप संभालना और भगवान उसे संभाल लेंगे। बोलो राधे राधे।