भगवान ने मेरा सबकुछ छीन लिया। Shri Hit Premanand JI Maharaj Pravachan

जब आश्रम में आये एक साधक पवन कुमार जी भोपाल से राधे-राधे महाराज जी आपके चरणो में कोटि कोटि प्रणाम महाराज जी दो साल भगवान जी और संतों की कृपा से भक्तिमार्ग में प्रवेश मिला । भगवान के नाम की शरण मिली महाराज जी शुरू में ही सुन लिया था कि कृष्ण भक्ति और कृष्ण प्रेम में धीरे-धीरे सब कुछ छीन जाता है। तब इतना सीरियसली नहीं लिया इधर सब कुछ मेरा धीरे-धीरे छिनता जा रहा है। और कृष्ण प्रेम प्राप्ति वैसी नहीं मिल पा रही हैं महाराज जी कृपया मार्गदर्शन करिये।

Shri Hit Premanand JI Maharaj Pravachan

गुरूदेव Shri Hit Premanand JI Maharaj तुम्हारा क्या था जो छिन गया है। आप क्या रचना की किए हैं जो छिन गया है, पांच भौतिक शरीर में आपका क्या पुरुषार्थ था। आप तो भगवान के अंश हैं, अगर वह एक आंख हटा दें तो उनकी मर्जी, कोई बात नहीं वह एक से दिखाना चाहते हैं यह तो उनकी वस्तु है, ना! तो आपका क्या है। पढ़ लिख रहे हैं तो भगवान ने बुद्धि दी है, अगर वह बुद्धि हरण कर ले तो फुटपाथ पर कागज बटोरते नजर आओगे, तो है क्या आपका! जो बात आई छीन गई, तो उसका प्रराब्ध्य है। जो हम लोग कहते हैं भगवान सर्वस्व छीन लेते हैं। इसका तात्पर्य होता है मन और इंद्रियों को भगवान में समर्पित होना। भगवान अपने बच्चों के बाहरी लीलाओं को खेल खिलौने को, कभी नाश नहीं करते अभी आप उस कोटि के शरणागत नहीं है कि आपका शुभ और अशुभों का विनाश हो गया हो। जब कुछ है ही नहीं आपका तो क्या छीना है। केवल अहंकार छीना है हमारा ,भ्रम छीना है हमारा ,अज्ञान छीना है । बात सत्य है भगवान जैसा कृपालु कोई नहीं है।

अध्यात्म जैसा कोई मार्ग नहीं परमानंद प्राप्ति के लिए अध्यात्म मार्ग है। जब हम अध्यात्म मार्ग में चलते हैं तो इसमें गुप्त बात है। यह अनंत जन्मों के पाप को भगवान भस्म कर देते हैं जो उन जन्मों से पाप कर्म का फल निकाल कर इस शरीर की रचना हुई है वह हमें भोगना पड़ेगा। क्योंकि अब हमारी भक्ति चल रही है शरीर बनने के पहले जो हमारे कर्म थे उनके साथ शरीर के पूरे जीवन का फल लिख दिया गया है । जैसे इतने समय के बाद हाथ टूटेगा, इतने समय के बाद भयंकर बीमारी होगी, इतने समय के बाद आंखों से कम दिखाई देगा ,आदि । हमारे कर्म के अनुसार भक्ति अब हम कर रहे हैं । हमारे पीछे के जो कर्म संस्कार जमा है उनको नष्ट कर दिया है। आगे जो कर्म संस्कार बचे हैं इसलिए गंदे होंगे नहीं। अगर भूलचूक से हो भी जाए तो भगवान उसे क्षमा कर देते हैं।

“रात ना प्रभु चितचूक किये कि । करत सुरत सैबार किए कि।।”

हृदय से देखते हैं कि मेरा भक्त है तो क्षमा कर देते हैं । पर इस शरीर का जब भोग आया है तो इसको भोगना पड़ेगा । जो जीव जितने समय के लिए आया है उतने समय तक रहेगा और चला जाएगा। यह शरीर जितने समय के लिए निर्धारित हो चुका है इसके बाद यह चला जाएगा। अगर विवेक से देखोगे तो भगवान की कृपा आपको दिखाई देगी और अगर अविवेक से देखोगे तो लगेगा कि भगवान के साथ हमने क्या बुरा किया जो हमारा सब कुछ छीन लिया । भगवान स्पष्ट कह रहे हैं- भोगना पड़ेगा तुम कर्म जो कर रहे हो एक उपाय है ऐसी शरणागति प्राप्त करो कि अहम भी समर्पित हो जाए। तो सब भस्म हो जाएगा।

इसलिए बात को अंदर से हटाओ कि भगवान मेरा सब कुछ छीन लिया है भगवान तो कृपा कर रहे हैं सच्ची मानो हमारी जितनी कर्म है, अगर वह हम पर टूट पड़े तो हम एक सांस लेने के लायक भी नहीं है। हम जैसे जैसे कर्म किए हैं। इसलिए भगवान के कृपा मनाओ और भक्ति में आगे बढ़ो, जब तुम ऊंचाई पर पहुंचोगे फिर देखोगे कि पीछे की बात में तो हर कर्म में दिखाई देगा की हां भगवान ने हमें बचा लिया । तो भगवान ने छीना नहीं आपको दिया है। दुर्लभ मनुष्य देह, दुर्लभ भगवान नाम ,दुर्लभ सत्संग, यह सब दिया है।

आप देने पर नजर करो जो छीने की बात कर रहे हो वह विनाशी है वह अपने समय से नष्ट हो जाएगा। उसकी कोई चिंता नहीं है जैसे -बर्फी रख दो जो बहुत बढ़िया दिखाई देती है दो-चार दिन में ऐसी फफूंदी और दुर्गंध आएगी कि वह देखने के लायक नहीं रहेगा क्योंकि उसका स्वरूप ही यही है तो नाश होने वाली चीजों का स्वभाव ही यही है! यह तो सिस्टम है ! “परिवर्तनशील विनाश मय” इसको दोष नहीं दिया जाता। सब अलग-अलग सिस्टम है तो जो तुम्हारे साथ हो रहा है तो तुम्हें लग रहा है भगवान तुमसे छीन रहे हैं । तो यहाँ कुछ अविनाशी नहीं है तुम जहां आए हो वह मृत्युलोक है। यहां तो सब पहले से तय है कि सब कुछ छूटने वाला है और तुम पकड़ कर बैठे हो? कि हमारा ना छूटे तो आज तक ऐसा कोई नहीं है कि जिसका पकड़ा हुआ है वह बचा रहे । यहाँ सबकुछ छूटेगा अगर कुछ मिलेगा तो परम धन राधा नाम ,कृष्ण नाम,।

भगवान भी अवतार लेते हैं तो समय के साथ अंतर्ध्यान हो जाते हैं। समय जितना लेकर आए हैं उतने ही रहेंगे जब भगवान नहीं रुके समय के आगे प्रगट अवतार में तो हम तुम कैसे आशा करोगे। “जो विधना ने लिख दिया छठी राव के अंक।, राई घटे ना तिल बढ़े रहु रे जीव निषंक।।” यहां जो पहले से तय है वही होगा ।

तुम राधा राधा जपो धर्म से चलो जो साथ है उनको लेकर चलो । जो छूट जाऐ जय श्री राधे राधे बोलकर आगे बढ़ो। और जो पकड़ के बैठेगा । हमारा लड़का, हमारी पत्नी, हमारा संपत्ति, तो बाद में रोने के सिवा हाथ में कुछ नहीं लगेगा। क्योंकि यह सब तुम्हारा ना था ना रहेगा ना होगा। यह सब माया है, राधा राधा जपो भजन करो वही साथ जाएगा यही तुम्हारा है। राधे-राधे।।

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