गृहस्थ जीवन में जप | Premanand Ji Maharaj Pravachan

गुरु जी राधे राधे महाराज जी आपका सत्संग रोज सुनते हैं उसको सुनने में आता है कि सतत नाम स्मरण से ही शिवजी की प्राप्ति हो जाती है। महाराज जी, जो गृहस्थ आश्रम के कार्य करते हुए निरंतर स्मरण नाम जप नहीं चल पाता है तो, कैसे करें? कि निरंतर नाम जप चलता रहे।

Shri Premanand Ji Maharaj

गुरू जी Shri Hit Premanand Ji Maharaj के श्री मुखारविंद से-

प्रारंभ तो यहां से होता है कि हमारे कुछ दिनचर्या होने चाहिए कुछ भागवतिक, कुछ आध्यात्मिक, और कुछ व्यावहारिक, जोकि गृहस्थदरों में नौकर, व्यापार ,या जो कुछ भी सेवाएं हैं वह अनिवार्य हैं। कुछ समय एकांत में अभ्यास करना चाहिए । ज्यादा समय नहीं तो अगर हम एक घड़ी यानी की चौबीस मिनट । इन चौबीस मिनट में तुम भूल जाओ तुम कौन हो, क्या करते हो, कहां जाना है, इस समय को प्रभु को दे दो । कोई गणित मत लगाओ मन को काटो केवल चौबीस मिनट ही मांग रहे हैं। चौबीस मिनट चौबीस घंटा की पूजा शक्ति के बराबर है। नाम का चिंतन करो , बहुत कठिन है क्योंकि बहुत समय से मन और इंद्रियां गृहस्थ के गणित को जोड़ने में लगा था। यहां जाना है , इसको कैसे करना है, उसको क्या देना है ,आदि । लेकिन फिर भी इसको काटना है बार-बार नाम का अभ्यास करिए । राधे-राधे नाम का चिंतन करिए ।

premanand guruji
Premanand Ji Maharaj Pravachan

अब अगर हम सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक किसी काम को करते हैं तो बीच में कभी भी हमें स्मरण आए तो राधा राधा फिर से सुमिरन करते रहिए और हाथ जोड़कर प्रभु से विनती करिए प्रभु हमसे कोई भी त्रुटि हुई हो सेवा में ,सुमिरन में , तो क्षमा करिए । और यह समय आपके चरणों में समर्पित करते हैं। बीच-बीच में स्मरण का अभ्यास जप करेंगे तो राधा राधा अंदर से यह स्मरण और अभ्यास एक दिन निरंतर सक्रिय हो जाएगा। जैसे आप सांस ले रहे हैं आपको लगता है कि मैं अगर सांस न लूं तो सांस अंदर नहीं जाएगी, ऐसा नहीं है वह स्वयं चल रही है ऐसे स्वाभाविक नाम भी चलने लगेगा। उसके लिए अभ्यास पहले हमारा कर्म समर्पण होना चाहिए। क्योंकि हमारे कर्म में इतना राग है की एकाग्रता खो जाती है बिना एकाग्रता के मन का जाप नहीं हो सकता । पर ऐसा नहीं की भजन नहीं हो सकता।

जब बाण सामने वाले का काटना है और अपना बाण संभल करके उसको मारना भी है। और नाम स्मरण भी करना है यह काम हो सकता है क्योंकि भगवान ने कहां है । तो इसके नीचे सब काम है क्योंकि उसको अपनी प्राण रक्षा भी करनी है। और शत्रु का प्राण हनन भी करना है, और उसके चलाए हुए शस्त्रों का निवारण भी करना है, फिर भगवान का चिंतन भी साथ होना है। ऐसा हो सकता है लेकिन बहुत अभ्यास के बाद हम प्रारंभ यहां से करेंगे कुछ समय एकांत में सुख पूर्वक जिस आसन पर बैठ सकते हैं पूरा का पूरा सामर्थ हम एकाग्रता में लगा कर नाम पर लगा देंगे । हम नाम सुन रहे हैं, नाम देख रहे हैं, नाम ही जप रहे हैं , होठ बंद करके एकदम शांत !

शुरू में मन बार-बार परेशान करेगा। लेकिन उससे हम मन हटा लेंगे फिर देखिएगा मन धीरे-धीरे नाम को पकड़ने लगेगा। धीरे-धीरे हम अभ्यास के द्वारा मन को प्रभु जाप में फंसाने लगेंगे, जैसे मन हमें विषयों में फंसाया है उसी तरह हम प्रभु के जाप में फंस जाएंगे । और फिर हमारा प्रयास देखकर प्रभु भी प्रसन्न हो जाते हैं। हमारे अंदर अगर नाम छूटे तो तुरंत स्मरण हो जाता है अखंड भजन के लिए लिखा है! ” तदरपिता ,अखिला, चालिता, तदिस्मरणेन, परम व्याख्याता।। जितने भी आप कार्य आचरण कर रहे हो प्रभु को अर्पित कर दो। और भजन का ऐसा अभ्यास बनाओ कि अगर नाम छूट भी जाए तो आपको व्याकुलता हो। प्रभ के नाम का महत्व ही जागृत हुआ तो वह हमारे , पाप, कृत्य और प्रवृत्ति जिससे पाप करते हैं दोनों का नाश कर देगा। तब भजन में रुचि आएगी ।

“नाम श्वास दु बिलग चलत हैं , इनको भेद ना मोको भावे । स्वासे नाम ही नाम स्वासा, नाम स्वास को भेद मिटावे।।”

तब रोम रोम राधा राधा बोलने लगेंगे! जो भी कर्म करो भागवत अर्पित करने हैं । यह धीरे-धीरे नाम जाप का अभ्यास पकड़ लेगा, नाम मन को पकड़ लेगा मन नाम को पकड़ लेगा। नाम मन अभेद हो जाएंगे। जैसे हमारा दिल धड़कता है उसमें हमारा कोई प्रयास नहीं ऐसे नाम चलने लगेगा। तो घबराओ नहीं अगर हम थोड़ा भी नाम का जाप कर लेंगे तो हम जरूर उन्नति पाएंगे क्योंकि हमारे साथ भगवान की कृपा है।

।। राधा राधा राधा राधा राधा।।।

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