बहुत मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिल रही तो यह करे। Premanand Ji Maharaj Pravachan

महाराज जी Shri Premanand Ji Maharaj Pravachan के प्रवचन से लिया गया अंश जहाँ एक आगंतुक साधक प्रश्न करते है राधे राधे महाराज जी आपके चरणो में कोटि कोटि प्रणाम महाराज जी क्या मेहनत नसीब बदल सकती है और क्या बिना मेहनत का सब प्राप्त हो सकता है?

Premanand Ji Maharaj Pravachan

महाराज जी Shri Premanand Ji Maharaj Pravachan के मुखारविंद से –

हां ग्रामीण भाषा में मेहनत मतलब पुरुषार्थ करना कहते हैं । अगर प्रबल पुरुषार्थ है तो बुरे प्रारंभ प्रारब्ध्य को मिटा सकता है और नवीन सुख सामग्री को सजा सकता है। “प्रबल पुरुषार्थ” प्रबल पुरुषार्थ वह होता है जो परोपकार दूसरों के दुख में सम्मिलित होकर उसको मिटा दे और भगवान का स्मरण करो।

इन दो के द्वारा यह प्रबल पुरुषार्थ आपके पूर्व प्रारब्ध्य को नष्ट कर देगा जैसे मेहनत बहुत करते हैं और लाभ बहुत कम प्राप्त होता है और बहुत कम मेंहनत पर बहुत ज्यादा लाभ प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति देखे जाते हैं कि जिनकी दिनचर्या में केवल भाग्यवश धन आ रहा है। कोई मेहनत नहीं । बिल्कुल कुछ नहीं कर रहा है। और उसके घर में अर्थ की बहुलता बहुत है यह उसका पूर्व का पुण्य है। जो उसे अर्थ प्राप्त करा रहा है। वर्तमान में वह पुरुषार्थहीनता दिखा रहा है तो जब तक प्रारब्ध्य भोग का पुण्य है, तब तक चलता रहेगा । और एक है वर्तमान में बहुत मेहनत कर रहा है लेकिन पूर्व का पाप उसे आगे नहीं बढ़ने दे रहा है।

अब पहले पीछे का जो पाप है उसे नष्ट करने वाला पुरुषार्थ बने हैं यह दो प्रकार से होता है। “परहित सरिस धर्म नहीं खाई” दूसरे का ऐसा हित करो जो असहाय है, असमर्थ है, रोगी है, परेशान स्थिति में है , उसका सहयोग बिना किसी स्वार्थ के करो और दूसरा- प्रभु का नाम जप करके ! इन दोनो के द्वारा पुराने कर्मों का परिणाम जो हमें आगे नहीं बढ़ने देते उनको नष्ट कर सकते हैं ।

प्रभु का नाम जप करते हुए दूसरों के सुख की भावना में अपने कर्तव्य का पालन करते हो तो यह पुरुषार्थ आपके पूर्व पाप का नाश कर सकता है। भाग्य से ही सब कुछ मिलता है ऐसा नहीं है, हां भाग्य भी काम करता है । एक है बहुत ज्यादा पढ़ाई लिखाई किया है लेकिन कोई नौकरी नहीं अपने गांव घर में ही छोटे-मोटे बिजनेस में है और दूसरा है कि पहले से ही एक जमीदार के घर में ही जन्मा है ना पढ़ने में रुचि, ना किसी क्रिया में रुचि, लेकिन बहुत अच्छी सांसारिक सुख भोग रहा है। यहां भी प्रारब्ध्य है उनका! लेकिन एक है बहुत गरीब घर में जन्मा बहुत मुश्किल से मेहनत की इतना पुरुषार्थ किया कि वह गांव में सबसे बड़ा आदमी बन गया। यह भी देखा जाता है कि जो अपने पुरुषार्थ को प्रबल कर दे तो प्रारब्ध्य को मिटाया जा सकता है । अगर पुरुषार्थ हल्का हो तो प्रारब्ध्य जोर कर देगा और आगे नहीं बढ़ने देगा । सबसे जोर का पुरुषार्थ है- “परहित करना और भगवान का जाप करना”

जिनको संसार में सबसे जल्दी उन्नति प्राप्त करना है तो , दो बात पकड़ ले भगवान से मनाए कि कभी किसी सेवा का अवसर मिले, माता-पिता, गुरुजन कोई बीमार व्यक्ति , जिसका कोई सहयोगी नहीं, कोई ऐसा जो बेसहारा हो। यह समझ लो कि बहुत बड़ी रामबाण औषधि है । यह तुम्हारे बुरे पाप को बिल्कुल नष्ट कर देगा। और जब हम दूसरों का सुख छीनते हैं यह भी मेहनत है । चोर भी तो मेहनत करता है जाने कितने हिम्मत करता है दूसरों की संपत्ति चुराने के लिए । मारपीट सहता है, मारपीट करता है ,वह मेहनत करके दूसरों का धन अपहरण करके उनको दुख देने वाली क्रिया करता है। उसकी यह मेहनत उसके पूर्व में जमा सुख देने वाली पुण्य का नाश हो रहा है । पूर्व का पाप और वर्तमान का पाप यह दोनों जब मिलेंगे किसी काम का नहीं रहेगा सब विध्वंस हो जाता है ।

इसलिए कहते हैं सदाचरण करो और दूसरों की सुख पहचानने की भावना लाओ । और प्रभ का नाम जप करो जय को प्राप्त कर लोगे । जटायु को वह गति वह दुलार मिला जो महाराज दशरथ को नहीं मिला। दशरथ जी वहां प्राण त्याग रहे हैं और भगवान श्रीराम वहां वनवास जा रहे हैं। जटायु जी ने अपने प्राणों की परवाह न करके सीता जी की रक्षा रावण से करने के लिए रावण पर आक्रमण कर दिया लेकिन उसके चंद्रहास के प्रहार से पंख कट गया और गिर गए, कहने लगे राम राम और भगवान राम अपनी गोद में उठाया उनका सर सहलाने लगे । भगवान ने एक वचन कहा कि आप मेरी कृपा से नहीं अपनी करनी से ऐसी उत्तम गति को प्राप्त हुए हैं तात! अगर प्राण भी चली जाए किसी के हित में तो वह भगवान को प्राप्त होगा , बहुत बड़ी बात है हमेशा पुरुषार्थ करें कि अपने प्रारब्ध्य का नाश कर प्रभु के शरण में रहें।

।।।।। राधे राधे राधे राधे।।।।

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