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Premanand Ji maharaj Navratri Vrat : नवरात्रि के व्रत कैसे करें

Premanand Ji maharaj Navratri Vrat : नवरात्रि के व्रत कैसे करें : नवरात्रि, देवी दुर्गा की पूजा का विशेष पर्व है, जो हर वर्ष अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दौरान भक्तजन विशेष रूप से व्रत रखते हैं, जिससे वे आत्मिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त कर सकें। श्री प्रेमानंद जी महाराज ने नवरात्रि के व्रत के महत्व और विधि पर गहन प्रकाश डाला है। उनके प्रवचन में नवरात्रि के दौरान व्रत रखने के सही तरीके, नियम और अनुशासन को समझाया गया है।

श्री प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि नवरात्रि का अर्थ है “नव” (नौ) “रात्रियाँ” (रातें)। यह पर्व माँ दुर्गा की नौ रूपों की आराधना का समय है। इस दौरान भक्तजन केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक व्रत भी रखते हैं। नवरात्रि के दौरान व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और मानसिक शांति मिलती है।

Premanand Ji maharaj Navratri Vrat : प्रवचन में श्री महाराज ने कहा कि व्रत का संकल्प लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संकल्प केवल भौतिक वर्जनाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि मानसिक और भावनात्मक शुद्धता का भी ध्यान रखना चाहिए। व्रत का संकल्प करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:

  1. शुद्ध मन से संकल्प: व्रत का संकल्प शुद्ध मन से करना चाहिए। मन में किसी प्रकार की नकारात्मकता नहीं होनी चाहिए।
  2. व्रत का उद्देश्य: व्रत रखने का उद्देश्य केवल भौतिक सुख की प्राप्ति नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और परमात्मा की कृपा प्राप्त करना होना चाहिए।
  3. नियमों का पालन: व्रत के दौरान नियमों का पालन करना अति आवश्यक है। इसमें खाने-पीने के नियम, पूजा का तरीका और ध्यान की विधि शामिल है।

श्री प्रेमानंद जी महाराज ने व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा की है:

व्रत के दौरान आहार का चयन बहुत महत्वपूर्ण है। महाराज ने बताया कि:

पूजा के दौरान ध्यान और भक्ति का होना आवश्यक है। श्री महाराज ने बताया कि:

व्रत के दौरान ध्यान और साधना पर जोर देना चाहिए। श्री महाराज ने ध्यान की विधि को इस प्रकार समझाया:

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व्रत के दौरान नकारात्मकता और बुरी सोच से दूर रहना आवश्यक है। महाराज ने बताया कि:

श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन में नवरात्रि के व्रत का पालन करने की विधि और उद्देश्य को स्पष्ट किया गया है। नवरात्रि का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक उत्थान का एक साधन है। इस पर्व के दौरान व्रत रखकर हम न केवल देवी माँ की कृपा प्राप्त करते हैं, बल्कि अपने जीवन में सकारात्मकता और शांति भी लाते हैं।

इस नवरात्रि, हम सभी को श्री प्रेमानंद जी महाराज के उपदेशों को ध्यान में रखते हुए अपने व्रत को संपूर्णता से करना चाहिए, ताकि हम अपनी आत्मा की शुद्धि और मानसिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सकें।

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