भक्तों को कष्ट क्यूँ होता है ? Premanand ji maharaj on 2025
by Bhakt

भक्तों को कष्ट क्यूँ होता है ? Premanand ji maharaj : मानव जीवन में कष्ट और पीड़ा ऐसी सच्चाई हैं जिन्हें हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में अनुभव करना पड़ता है। परंतु, जब यह प्रश्न उठता है कि “भक्तों को इतना कष्ट क्यों होता है?” तो इसका उत्तर समझना न केवल जटिल है, बल्कि गहन आध्यात्मिक दृष्टिकोण की भी मांग करता है। इस विषय पर पूज्य प्रमानंद जी महाराज ने गहन और सरल दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
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भक्तों के कष्ट का उद्देश्य : Premanand ji maharaj
भक्तों को मिलने वाले कष्ट कोई साधारण घटना नहीं हैं। वे भगवान की योजना के अंतर्गत ही आते हैं और उनके पीछे गहरी आध्यात्मिक कारण होते हैं। भगवान अपने भक्तों को कभी दुखी नहीं देखना चाहते, परंतु उन्हें उच्चतर आध्यात्मिक स्थिति तक पहुंचाने के लिए इन कष्टों का माध्यम बनाते हैं। यह एक प्रकार का प्रशिक्षण है, जैसे एक गुरु अपने शिष्य को अनुशासन सिखाने के लिए उसे कठोर परिस्थितियों में डालता है।
- पापों का शुद्धिकरण: जब भक्त ईश्वर की ओर बढ़ते हैं, तो उनके पिछले जन्मों के कर्म उन्हें प्रभावित करते हैं। ये कष्ट उनके उन कर्मों का शुद्धिकरण करते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे सोने को अग्नि में तपाकर उसे शुद्ध किया जाता है। भक्त को मिलने वाले कष्ट उनके भीतर छिपे हुए पापों को समाप्त करते हैं।
- संबंध का परीक्षण: भगवान भक्त का प्रेम और निष्ठा परखने के लिए उसे कठिन परिस्थितियों में डालते हैं। यह परीक्षा यह दिखाती है कि भक्त वास्तव में भगवान से कितना प्रेम करता है। यदि कठिन समय में भी भक्त भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास बनाए रखता है, तो यह उसका आध्यात्मिक उन्नति का कारण बनता है।
- संसार के मोह से मुक्ति: कष्ट हमें यह सिखाते हैं कि यह संसार अस्थायी है। भौतिक सुख और सुविधाएं क्षणभंगुर हैं। जब भक्त इस सत्य को समझ लेता है, तो उसका झुकाव ईश्वर की ओर अधिक हो जाता है।
कष्ट सहने की शक्ति : Premanand ji maharaj
प्रमानंद जी महाराज कहते हैं कि भगवान कभी भी अपने भक्त को उसकी सहनशक्ति से अधिक कष्ट नहीं देते। यह उनके प्रेम का प्रमाण है। जैसे एक माता-पिता अपने बच्चे को उतना ही कार्य करने देते हैं जितना वह सहन कर सके, वैसे ही भगवान भी अपने भक्त को उसके सामर्थ्य के अनुसार कष्ट प्रदान करते हैं। साथ ही, वे उसे इन कष्टों से लड़ने की शक्ति भी प्रदान करते हैं।
भक्त को यह समझना चाहिए कि यह कष्ट अस्थायी हैं और भगवान की कृपा से वे समाप्त हो जाएंगे। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि “सुख-दुख को समान मानकर अपने कर्म करते रहो।” यह संदेश हमें सिखाता है कि कष्ट सहने की शक्ति हमारे भीतर ही है।
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कष्टों का स्वागत
सच्चा भक्त कष्टों का स्वागत करता है। संत तुलसीदास जी ने कहा है:
“होइहें सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।”
अर्थात, जो कुछ भी होता है, वह भगवान की इच्छा से होता है। भक्त इस सत्य को स्वीकार कर अपने जीवन की हर परिस्थिति में ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करता है। जब भक्त इस दृष्टिकोण से कष्टों को देखता है, तो उसे उन कष्टों में भी ईश्वर की कृपा दिखाई देती है।
भक्तों के उदाहरण
इतिहास में कई महान भक्तों ने अत्यधिक कष्ट सहे, परंतु उनकी निष्ठा में कभी कमी नहीं आई।
- प्रह्लाद: प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकशिपु ने अनेक कष्ट दिए, लेकिन उसने ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति और विश्वास को नहीं छोड़ा। अंत में, भगवान ने स्वयं प्रकट होकर उसकी रक्षा की।
- मीरा बाई: मीरा बाई को अपने परिवार और समाज से अत्यधिक कष्ट झेलने पड़े, लेकिन उनकी कृष्ण भक्ति अडिग रही। उनकी भक्ति और निष्ठा ने उन्हें अमर बना दिया।
- संत कबीर: संत कबीर को समाज के बंधनों और धार्मिक कट्टरता का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए।
भक्तों के लिए संदेश : Premanand ji maharaj
प्रमानंद जी महाराज भक्तों को यह संदेश देते हैं कि कष्ट हमें कमजोर नहीं करते, बल्कि हमें सशक्त बनाते हैं। वे हमारी आत्मा को दृढ़ता प्रदान करते हैं और हमें ईश्वर के निकट ले जाते हैं। भक्त को चाहिए कि वह अपने कष्टों को ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करे और उनका सामना धैर्य और साहस के साथ करे।
भक्त को यह समझना चाहिए कि कष्ट केवल एक माध्यम हैं, जो उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाते हैं। जब भक्त अपने कष्टों को ईश्वर के प्रति समर्पित करता है, तो वह उन कष्टों के पार भी ईश्वर का आनंद अनुभव कर सकता है।
प्रेमानंद जी महाराज : Premanand ji maharaj
भक्ति मार्ग में चलने वाले भक्त अक्सर यह प्रश्न करते हैं कि वे जीवन की व्यथाओं से कैसे बच सकते हैं। जब कोई भक्त भगवान का आश्रय लेता है और भक्ति के पथ पर अग्रसर होता है, तब भी उसे जीवन में कष्ट और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि संसार का स्वभाव ही दुःखमय है। लेकिन सच्चे भक्त के लिए इन कष्टों को सहना और उनसे ऊपर उठना संभव है, यदि वह सही दृष्टिकोण अपनाए और भक्ति के मूल सिद्धांतों को समझे।
1. व्यथा का अर्थ और उसका महत्व
व्यथा केवल शारीरिक या मानसिक पीड़ा नहीं है, यह आत्मा के विकास का एक माध्यम है। जब भगवान भक्त को किसी व्यथा में डालते हैं, तो यह उसकी परीक्षा होती है। यह परीक्षा भक्त को उसके अहंकार, सांसारिक मोह और बंधनों से मुक्त करने के लिए होती है। जैसे सोने को तपाकर शुद्ध किया जाता है, वैसे ही भक्त को व्यथा की अग्नि में तपाकर उसे निर्मल और दृढ़ बनाया जाता है।
2. व्यथा के कारण
भक्त के जीवन में व्यथा के कई कारण हो सकते हैं:
- पूर्व जन्म के कर्म: हमारे कर्मों का फल इस जीवन में प्राप्त होता है। यदि पूर्व जन्म में हमने अशुभ कर्म किए हैं, तो उनका प्रभाव जीवन में व्यथा के रूप में आता है।
- संसारिक मोह: जब तक मनुष्य संसार के प्रति आसक्त रहेगा, उसे दुःख का अनुभव होगा। भक्ति के मार्ग पर चलने के बावजूद, यदि भक्त संसार में फंसा रहेगा, तो उसे व्यथा होगी।
- भगवान की परीक्षा: भगवान अपने भक्तों की निष्ठा की परीक्षा लेते हैं। यह परीक्षा भक्त को अधिक बलवान और समर्पित बनाने के लिए होती है।
3. भक्त व्यथा से बचने के उपाय
क. भगवान पर पूर्ण विश्वास रखें
भक्त को यह समझना चाहिए कि जो कुछ भी हो रहा है, वह भगवान की इच्छा से हो रहा है। भगवान अपने भक्त के लिए हमेशा शुभ ही सोचते हैं। जब भक्त इस भावना को अपने हृदय में धारण करता है, तो वह व्यथा का अनुभव नहीं करता।
ख. भक्ति को अपना आधार बनाएं
भक्त को अपने जीवन का केंद्र भगवान और उनकी भक्ति को बनाना चाहिए। जब भक्त का मन पूरी तरह से भगवान में लीन हो जाता है, तो बाहरी कष्ट उसे प्रभावित नहीं करते। जैसे समुद्र की गहराई में तूफान का कोई प्रभाव नहीं होता, वैसे ही सच्चे भक्त का मन शांत रहता है।
ग. सत्संग और साधना का महत्व
सत्संग का अर्थ है संतों और महात्माओं के साथ रहना। सत्संग से मन को शक्ति और शांति मिलती है। साधना और ध्यान से भक्त को अपनी आत्मा के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है। यह जुड़ाव उसे व्यथा से ऊपर उठने में मदद करता है।
घ. समर्पण और स्वीकार्यता
भक्त को हर परिस्थिति को भगवान का प्रसाद मानकर स्वीकार करना चाहिए। जब हम समर्पण की भावना से हर स्थिति को स्वीकार करते हैं, तो व्यथा का भार हल्का हो जाता है।
ङ. आत्मा का वास्तविक स्वरूप समझें
भक्त को यह समझना चाहिए कि वह शरीर नहीं, बल्कि आत्मा है। आत्मा को कोई भी शारीरिक या मानसिक व्यथा प्रभावित नहीं कर सकती। जब यह ज्ञान पक्का हो जाता है, तो भक्त हर व्यथा से मुक्त हो जाता है।
4. व्यथा में भगवान की कृपा
भक्त को यह समझना चाहिए कि व्यथा भी भगवान की कृपा है। यह उसे उसके आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर प्रेरित करती है। जब भक्त भगवान से प्रार्थना करता है और उनकी शरण में जाता है, तो भगवान उसे अपने स्नेह और करुणा से व्यथा का अनुभव हल्का कर देते हैं।
5. उदाहरण और प्रेरणा
शास्त्रों और पुराणों में अनेक भक्तों के उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने व्यथा का सामना करके भगवान की कृपा प्राप्त की:
- प्रह्लाद: हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेक प्रकार के कष्ट दिए, लेकिन भगवान में उसकी अटूट श्रद्धा ने उसे हर व्यथा से मुक्त किया।
- मीरा बाई: समाज और परिवार ने उन्हें अस्वीकार किया, लेकिन उनकी भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम ने उन्हें हर व्यथा से ऊपर उठाया।
- सुदामा: गरीबी और कठिनाइयों के बावजूद, उनकी भक्ति ने उन्हें भगवान कृष्ण के सान्निध्य और कृपा का अनुभव कराया।
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6. निष्कर्ष
भक्त को व्यथा से डरना नहीं चाहिए। यह भगवान द्वारा प्रदान की गई एक परीक्षा है, जो उसे आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर ले जाती है। भगवान पर अटूट विश्वास, भक्ति में दृढ़ता, और परिस्थितियों को स्वीकार करने की क्षमता से भक्त हर व्यथा को अपने लाभ में बदल सकता है।
जब भक्त यह समझ जाता है कि व्यथा भी भगवान की योजना का हिस्सा है, तो वह उसमें छिपी कृपा को देख सकता है। इस प्रकार, भक्त व्यथा से बचता नहीं, बल्कि उसका सामना करता है और उसे अपने आध्यात्मिक विकास का साधन बना लेता है।
“हर व्यथा में भगवान की लीला देखो, हर कष्ट में उनकी कृपा का अनुभव करो। यही सच्ची भक्ति है।” – प्रेमानंद जी महाराज
भक्तों को कष्ट इसीलिए होते हैं क्योंकि भगवान उन्हें अपने निकट लाना चाहते हैं। कष्ट हमें सिखाते हैं कि यह संसार क्षणिक है और वास्तविक सुख केवल ईश्वर की शरण में ही है। यह हमारे कर्मों का शुद्धिकरण करता है, हमारी निष्ठा की परीक्षा लेता है और हमें संसार के मोह से मुक्त करता है।
प्रमानंद जी महाराज कहते हैं कि यदि भक्त इन कष्टों को भगवान की कृपा मानकर सह लेता है, तो वह न केवल आध्यात्मिक रूप से प्रबल होता है, बल्कि उसके जीवन में शांति और आनंद भी आ जाते हैं। इसलिए, हमें अपने कष्टों को स्वीकार कर भगवान की शरण में रहना चाहिए। यही सच्ची भक्ति है।
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भक्तों को कष्ट क्यूँ होता है ? Premanand ji maharaj : मानव जीवन में कष्ट और पीड़ा ऐसी सच्चाई हैं जिन्हें हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में अनुभव करना पड़ता है। परंतु, जब यह प्रश्न उठता है कि “भक्तों को इतना कष्ट क्यों होता है?” तो इसका उत्तर…