क्या पुण्य करने से पापों का नाश | Premanand Ji Maharaj Pravachan

जानिए क्या पुण्य करने से पापों का नाश हो जायेगा? सदगुरुदेव श्री प्रेमानंद जी महाराज अपने अनमोल वचनों से नित्य हमें कृतार्थ कर रहे है जहाँ प्रतिदिन दरबार में आये श्रद्धालु गुरुदेव से अपने प्रश्नों का उत्तर पाकर संतुष्ट होते है

प्रेमानंद जी महाराज प्रवचन-

जानिए क्या पुण्य करने से आपके पापों का नाश हो जाएगा? यह प्रश्न महाराज धृतराष्ट्र ने सनत सुजात जी से किया था भगवान आप ही एक ऐसा है जो सर्वज्ञ हैं और इसका ठीक से निर्णय कर सकते हैं। मनुष्य दो प्रकार के कर्म करता रहता है। बहुत बड़ा पापी हो, तो भी उसमें कुछ पुण्य कर्म होते हैं, ऐसा कोई नहीं है इस सृष्टि में जिसमें एकदम से कोई गुण हो ही नहीं ! और पाप पुण्य से यह मिश्रित शरीर बना हुआ है । अगर कोई सम्भाल ले गया और कुमति को नष्ट कर ले गया। तो फिर सुमित पदवी यानी ( मोक्ष ) पदवी प्राप्त हो जाता है ! फिर वह पाप पुण्य दोनों से ऊपर उठ जाता है। नहीं तो अक्सर देखा जाता है बड़े से बड़े गुणवान में भी कोई ना कोई दोष होता है और बड़े से बड़े दोषी में भी कोई गुण होता है । यह गुण दोष में सृष्टि की रचना हुई है।

जड़ चेतन गुण दोष मय, विश्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार।।

हे सनत सुजान जी ऐसा हमने सुना है कि कुछ लोग धर्माचरण तो बहुत करते हैं पर साथ में पापाचरण भी करते हैं तो क्या धर्माचरण से पापाचरण नष्ट हो जाता है। सनत सुजान जी ने कहा –

पाप-पुण्य की गति

धर्म और अधर्म अर्थात पाप और पुण्य इसके दो मार्ग हैं अगर आप पाप कर रहे हो तो अलग हिसाब है। और पुण्य कर रहे हो तो इसका अलग हिसाब हैं । आपके बहुत अधिक पाप हो गए हैं नाम मात्र के केवल पुण्य है तो, पहले नरक जाना होगा। और अगर आपके बहुत पुण्य हो गए हैं, तो पहले आपको स्वर्ग जाना होगा। तो श्री सनत सुजात जी कहते हैं कि पुण्य के द्वारा पाप को नष्ट नहीं किया जा सकता, उसका अलग विभाग है जिसका आपको अलग फल मिलेगा। बस एकमात्र उपाय है जिससे पाप को नष्ट किया जा सकता है । वह है भगवान का भजन, जो विद्वान यह बात समझ जाता है ज्ञान द्वारा की एकमात्र परमात्मा की शरण, परमात्मा का भजन ध्यान, ही तुम्हारे पाप और पुण्य दोनों का नाश करके परम सुख, परम पद, प्रदान करेगा। यह शास्त्रों में प्रचलित बात है, अगर जो ऐसी बात नहीं मानता तो वह देहा-अभिमानी मनुष्य पुण्य और पाप दोनों का क्रमशः फल भोगता ही रहेगा। जब से सृष्टि रची गई तब से आज तक यह विधान चल रहा है।

ये बात कभी भगवान के दर्शन न होने देगी – प्रेमानंद जी

यही पाप पुण्य का क्रम है इस प्रकार पुण्य बढ़ा तो स्वर्ग, पाप बढ़ा तो नरक, स्वर्ग और नरक दोनों स्थिर हैं । यह अविनाशी नहीं है। जब वहां पुण्य और पापों का विशेष भोग हो जाता है , कुछ बचा तो, फिर वह क्रमानुसार, संस्कार अनुसार, फिर वह पुनः पाप पुण्य एकत्रित करता है ।और फिर वह लोकों में जन्म मरण में फंस जाता है । हां मनुष्य जन्म इसके लिए नहीं मिला है। इस चक्र से निकलने के लिए आसान उपाय है कि तत्वज्ञ महापुरुषों का संघ, प्रभु का कीर्तन भजन ,सत्य धर्म का पालन करना । शास्त्र प्रमाणित बातें हैं

“दिव्यम वस्तु गोविंदम तउभ्यम “

हे नाथ आपकी वस्तु आपको समर्पित है। अभी तक अहंकार के कारण दुर्गति हुई है । हे नाथ अब जो दुख सुख आएगा उसको सहूंगा सब कुछ आप ही का दिया हुआ है मेरा कुछ नहीं ।
“मेरे तो बस गिरधर गोपाल और दूसरा ना कोई ” कभी भी कोई पुण्य करके पाप को नष्ट नहीं कर सकता। यह बात सनत सुजात जी बोल रहे हैं अगर पाप को नष्ट करना है तो एक उपाय है भगवान की शरण में हो जाओ, उनका आश्रय, उनका चिंतन,उनका धाम है। वह सब के मालिक हैं सब कुछ ठीक कर देंगे ।

।। राधा राधा राधा राधा।।

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