Shri Hit Premanand Ji Maharaj | श्री हित प्रेमानंद जी महाराज जीवन परिचय

Shri Hit Premanand Ji Maharaj | प्रारंभिक जीवन -भक्तिमय पारिवारिक माहौल

Shri Hit Premanand Ji Maharaj एक सदगुरुदेव कैसे होने चाहिये उनकी जीवन-शैली, रहन-सहन कैसा होना चाहिये यदि आज के परिवेश में देखा जाये तो हमारे सदगुरुदेव भगवान श्री हित प्रेमानंद जी महाराज को देखकर और उनके सादर वचनों को सुनकर ह्रदय को जो शीतलता मिलती है और इस अवसाद भरे वातावरण में सही तरीके से जीने की और श्री राधा रानी जू के नाम सुमिरन के लिए जो आत्मबल मिलता है उसको प्रेमीजन ही समझ सकते है श्री हित प्रेमानंद जी महाराज के अमृत प्रवचनों से आज समाज धन्य हो रहा है

सोशल मीडिया, यूटियूब पर उनके कहे गए प्रवचनों की भरमार है महाराज जी की विनम्रता और साधुता अलौकिक है सदगुरुदेव भगवान की दोनों किडनियां फेल है और हर दूसरे दिन डायलिसिस होता है लेकिन फिर भी महाराज जी अपनी दिनचर्या का बड़ी कठोरता से पालन करते है हर दिन जब वो अपने आश्रम से निकलते है तो उनके अनुयायियों का रास्ते भर में ताँता लगा रहता है इस लेख में हम महाराज श्री के जीवन यात्रा को विस्तार से जानेंगे जय जय श्री राधा

महाराज जी के अनमोल प्रवचन अवश्य पढ़े

पूज्य महाराज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक, अखरी नामक गांव में एक विनम्र और अत्यंत सात्विक ब्राह्मण (पांडेय) परिवार में हुआ था इनका वास्तविक नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था।

बचपन से ही आध्यात्मिक भक्तिमय, अत्यंत शुद्ध और शांत माहौल में इनकी परवरिश हुई, इनके दादाजी एक सन्यासी थे इनके पिता श्री शंभू पांडे एक भक्त व्यक्ति थे और बाद के वर्षों में उन्होंने संन्यास स्वीकार कर लिया। उनकी माता श्रीमती रमा देवी भी प्रभु चरणों की अनुरागी थीं और सभी संतों का बहुत सम्मान करती थीं। पूरा परिवार नियमित रूप से संत-सेवा और विभिन्न भक्ति सेवाओं में लगे रहते थे। पवित्र घरेलू वातावरण ने इनके भीतर छुपी अव्यक्त आध्यात्मिक चिंगारी को तीव्र कर दिया। और वे आध्यात्मिक पुस्तकों जैसे श्री सुखसागर आदि का अध्धयन करना शुरू कर दिए।

छोटी आयु में जगा आध्यात्म प्रेम-

छोटी सी आयु में ही उनके मन में जीवन का उद्देश्य क्या है, सच्चा प्रेम क्या है, सांसारिक लोगों से प्रेम यदि अस्थायी है तो उसमे क्यों पड़ना, क्या स्कूल के भौतिक ज्ञान से चिर अस्थायी सुख की प्राप्ति हो सकती है ऐसे अनेकों प्रश्न आने लगे जिससे इनका मन द्रवित हो उठा।

जब वे नौवीं कक्षा में थे, तब मन की जिज्ञासा और प्रबल हुई इश्वारोंमुख होने की तब उन्होंने आध्यात्मिक जीवन जीने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। इस महान उद्देश्य के लिए वह अपने घर-परिवार को छोड़ने के लिए तैयार थे। उन्होंने अपनी माता जी को अपने विचारों और निर्णय के बारे में बताया और तेरह साल की छोटी सी आयु में, एक दिन सुबह 3 बजे महाराज जी ने आध्यात्मिक ब्रह्मचारी जीवन के लिए घर छोड़ दिया।

ब्रह्मचारी जीवन और संन्यास की दीक्षा-

बालस्वरुप महाराज जी को नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी गयी। उनका नाम आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी रखा गया, और बाद में उन्होंने संन्यास स्वीकार कर लिया। महावाक्य को स्वीकार करने पर उनका नाम स्वामी आनंदाश्रम रखा गया।

महाराज जी ने सख्त सिद्धांतों का पालन करते हुए पूर्ण त्याग का जीवन व्यतीत व्यतीत करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने अपने जीवित रहने के लिए केवल भगवान की दया से प्रदान की गई चीजों को स्वीकार किया।

एक आध्यात्मिक साधक जीवन जीने के रूप में, उन्होंने अपना अधिकांश जीवन माँ गंगा जी के तट पर बिताया। वह भूख, कपड़े या मौसम की परवाह किए बिना गंगा के घाटों (हरिद्वार और काशी के बीच अस्सी-घाट और अन्य) पर घूमते रहे। भीषण सर्दी में भी उन्होंने गंगा में तीन बार स्नान करने की अपनी दिनचर्या को कभी नहीं छोड़ा। वह कई दिनों तक बिना भोजन के उपवास करते थे और ध्यान में लीन रहते थे। संन्यास के कुछ ही वर्षों के भीतर उन्हें भगवान भोलेनाथ का विधिवत आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

महाराज जी का वृन्दावन आगमन-

एक संत की प्रेरणा ने उन्हें रास लीला में भाग लेने के लिए राजी किया, जिसका आयोजन स्वामी श्री श्रीराम शर्मा द्वारा किया जा रहा था। उन्होंने एक महीने तक रास लीला में भाग लिया। सुबह में वह श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ और रात में श्री श्यामा-श्याम की रास लीला देखते थे। एक महीने में ही वह इन लीलाओं को देखकर इतना मोहित और आकर्षित हो गये कि आगे वह इनके बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सके। बाद में, स्वामी जी की सलाह पर और श्री नारायण दास भक्तमाली (बक्सर वाले मामाजी) के एक शिष्य की मदद से, महाराज जी मथुरा के लिए ट्रेन में चढ़ गए, उस समय उन्हें नहीं पता था कि वृंदावन उनका मन हमेशा के लिए चुरा लेगा।

सन्यासी जीवन से श्रीराधावल्लभी संत में परिवर्तन होना-

महाराज जी बिना किसी परिचित व्यक्ति के बांकेबिहारी जी का आसरा लेकर वृन्दावन पहुँचे। महाराज जी की प्रारंभिक दिनचर्या में श्री धाम वृन्दावन परिक्रमा और श्री बांकेबिहारी लाल के दर्शन शामिल थे। बांकेबिहारी जी के मंदिर में उन्हें एक संत ने बताया कि उन्हें श्री राधावल्लभ मंदिर भी अवश्य देखना चाहिए। एक दिन पूज्य श्री हित मोहितमराल गोस्वामी जी ने श्री राधारससुधानिधि का एक श्लोक सुनाया लेकिन महाराज जी संस्कृत में पारंगत होने के बावजूद इसका गहरा अर्थ समझने में असमर्थ थे। तब गोस्वामी जी ने उन्हें श्री हरिवंश का नाम जपने के लिए प्रोत्साहित किया। महाराज जी शुरू में ऐसा करने के लिए अनिच्छुक थे। हालाँकि, अगले दिन जैसे ही उन्होंने वृन्दावन परिक्रमा शुरू की, उन्होंने खुद को श्री हित हरिवंश महाप्रभु की कृपा से उसी पवित्र नाम का जप करते हुए पाया। इस प्रकार, वह इस पवित्र नाम (हरिवंश) की शक्ति के प्रति आश्वस्त हो गये।

” श्रीप्रिया-वदन छबि-चन्द्र मनौं, प्रीतम-नैंन-चकोर | प्रेम-सुधा-रस-माधुरी, पान करत निसि – भोर “

महाराज जी ने संन्यास के नियमों को किनारे रखते हुए सखी से बात की और उनसे उस पद को समझाने का अनुरोध किया जो वह गा रही थी। वह मुस्कुराईं और उनसे कहा कि यदि वह इस श्लोक को समझना चाहते हैं तो उन्हें राधावल्लभी बनना होगा।
महाराज जी ने तुरंत और उत्साहपूर्वक दीक्षा के लिए पूज्य श्री हित मोहित मराल गोस्वामी जी से संपर्क किया, महाराज जी को राधावल्लभ संप्रदाय में शरणागत मंत्र से दीक्षा दी गई थी। कुछ दिनों बाद पूज्य श्री गोस्वामी जी के आग्रह पर, महाराज जी अपने वर्तमान सद्गुरु देव से मिले, जो सहचरी भाव के सबसे प्रमुख और स्थापित संतों में से एक हैं – पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज, जिन्होंने उन्हें सहचरी भाव और नित्यविहार रस की दीक्षा दी।

महाराज जी 10 वर्षों तक अपने सद्गुरु देव की निकट सेवा में रहे और उन्हें जो भी कार्य दिया जाता था, उसे पूरी निष्ठा से करते हुए उनकी सेवा करते थे। जल्द ही अपने सद्गुरु देव की कृपा और श्री वृन्दावनधाम की कृपा से, वह श्री राधा के चरण कमलों में अटूट भक्ति विकसित करते हुए सहचरी भाव में पूरी तरह से लीन हो गए।

अपने सद्गुरु देव के पदचिन्हों पर चलते हुए महाराज जी वृन्दावन में मधुकरी नामक स्थान पर रहते थे। उनके मन में ब्रजवासियों के प्रति अत्यंत सम्मान है और उनका मानना ​​है कि कोई भी व्यक्ति ब्रजवासियों के अन्न को खाए बिना “दिव्य प्रेम” का अनुभव नहीं कर सकता है।

Shri Hit Premanand Ji Maharaj Biography Overview

बाल्यावस्था का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय
जन्मस्थान सरसौल ब्लॉक, अखरी गांव कानपुर उत्तर प्रदेश
माता का नाम श्रीमती रमा देवी
पिता का नाम श्री शम्भू पाण्डेय
स्कूली शिक्षा ९ वीं
घर त्यागते समय अवस्था १३ वर्ष
महाराज जी के गुरुदेव का नाम पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज
गुरुदेव की सेवा १० वर्ष
महाराज जी की आयु लगभग (६० वर्ष)
Shri Hit Premanand Ji Maharaj Biography

Premanand Ji Maharaj Health | प्रेमानंद जी महाराज का स्वास्थ्य-

महाराज जी अपने प्रवचनों में कहते है कि उनकी दोनों किडनियां खराब है और हर दूसरे दिन डायलिसिस होता है फिर भी महाराज जी की अवस्था को और उनको देखकर लगता है की वो पूरी तरह स्वस्थ्य है महाराज जी श्री धाम वृन्दावन में वास करते हुए श्री राधा-वल्लभ सरकार में निरंतर मगन रहते है और श्रद्धालुओं को भी श्री राधा नाम जाप करने के लिए प्रेरित करते है महाराज जी श्रद्धालुओं के प्रश्नों का शास्त्र सम्मत उत्तर भी देते है उनकी बातें सुनने के बाद मन बरबस उनकी ओर खिचा चला जाता है महाराज जी की पूरी दिनचर्या आध्यात्मिक गतिविधियों में ही व्यतीत होती है

Premanand Ji Maharaj Address Details | प्रेमानंद जी महाराज का पता और संपर्क सूत्र-

आश्रम का पता– श्री हित राधाकेली कुंज, वृन्दावन परिकर्मा मार्ग वराह घाट, वृन्दावन उत्तर प्रदेश भारत -२८११२१

इस पते पर जाकर आप महाराज जी के दर्शन प्राप्त कर सकते है अधिक जानकारी आप ऑफिसियल वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी ले सकते है

Email ID- info@vrindavanrasmahima.com
Web– www.vrindavanrasmahima.com
Instagram– vrindavanrasmahima
Facebook– Vrindavan Ras Mahima
YouTube– Vrindavan Ras Mahima, Bhajan Marg, Shri Hit Radha Kripa

FAQ on Premanand Ji Maharaj | प्रेमानंद जी महाराज से जुड़े प्रश्न

प्र. 1– महाराज जी के गुरु जी कौन है

उ.पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज

प्र. 2- महाराज जी ने सन्यास के लिए घर किस अवस्था में छोड़ा ?

उ.१३ वर्ष में

प्र. 2- महाराज जी की आयु कितनी है

उ.६० वर्ष लगभग

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