हिंदुओं को टैटू बनवाना चाहिए ? प्रेमानन्द जी के विचार Tatto is good or bad ?

हिंदुओं को टैटू बनवाना चाहिए ? प्रेमानन्द जी के विचार Tatto is good or bad ? : आज के समय में टैटू (गुदना) बनवाना एक फैशन बन चुका है। विशेष रूप से युवा वर्ग में इसकी लोकप्रियता अधिक देखने को मिलती है। कई लोग अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए देवी-देवताओं के चित्रों, मंत्रों और धार्मिक प्रतीकों के टैटू बनवाते हैं। वहीं, कुछ लोग इसे महज एक सजावट के रूप में देखते हैं। किंतु, प्रश्न यह है कि क्या हिंदू धर्म की दृष्टि से टैटू बनवाना उचित है? प्रबोधन प्रमानंद जी महाराज के अनुसार, इस विषय पर गहराई से विचार करना आवश्यक है।

Tatto is good or bad ? : नीचे पूरी पोस्ट पढ़ें ।

हिंदू धर्म में शरीर को आत्मा का वाहन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, मनुष्य का शरीर पवित्र होता है और इसे सदा स्वच्छ एवं शुद्ध रखना चाहिए। शरीर को रंगवाना या गुदवाना शास्त्रीय दृष्टि से सही नहीं माना गया है। प्रबोधन प्रमानंद जी महाराज कहते हैं कि जब हम अपने शरीर पर देवी-देवताओं के चित्र या मंत्र अंकित करवाते हैं, तो हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शरीर हर समय शुद्ध नहीं रह सकता। स्नान न करने की स्थिति में, मल-मूत्र त्याग के समय, या पसीने से गंध आने पर शरीर अशुद्ध हो जाता है। ऐसे में देवी-देवताओं के चित्र या पवित्र मंत्रों का अनादर हो सकता है।

शास्त्रों में कहा गया है:
“देहो देवालयः प्रोक्तः” अर्थात यह शरीर देवालय के समान है। जब मंदिर को हम साफ-सुथरा रखते हैं, तो शरीर को भी वैसा ही पवित्र रखना चाहिए। टैटू बनवाने से शरीर को स्थायी रूप से रंग दिया जाता है, जो शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार शरीर की प्राकृतिक अवस्था को विकृत करता है।

प्रबोधन प्रमानंद जी महाराज कहते हैं कि आधुनिकता के प्रभाव के कारण आजकल लोग पश्चिमी सभ्यता की नकल कर रहे हैं। टैटू भी इसी नकल का एक उदाहरण है। भारत की प्राचीन संस्कृति में गुदना का चलन ग्रामीण समाज में देखा जाता था, किंतु वह भी सीमित अर्थों में था। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अपने हाथों और पैरों पर गुदना बनवाती थीं, किंतु वह एक प्रकार की पारंपरिक सजावट होती थी, जिसमें देवी-देवताओं के चित्र नहीं होते थे। आजकल के टैटू फैशन के तहत बनवाए जाते हैं, जिनमें ज्यादातर अर्थहीन डिज़ाइन या भौतिक सुख-सुविधाओं को बढ़ावा देने वाले चित्र होते हैं।

महाराज जी कहते हैं कि जब हम किसी चीज को सिर्फ इसलिए अपनाते हैं कि वह फैशन में है, तो हम अपनी मूल पहचान खोने लगते हैं। एक सच्चा हिंदू वह है जो अपनी संस्कृति और परंपराओं का आदर करता है और बिना सोचे-समझे पश्चिमी रिवाजों की नकल नहीं करता।

टैटू बनवाने के कई स्वास्थ्य संबंधी नुकसान भी हो सकते हैं। प्रबोधन प्रमानंद जी महाराज इस बात पर विशेष बल देते हैं कि शरीर को अनावश्यक रूप से कष्ट देना या उसमें स्थायी रूप से रसायन डालना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। टैटू बनवाने में उपयोग किए जाने वाले सुई और रसायन त्वचा की ऊपरी परत को छेदते हैं और उनमें रंग भरते हैं। इससे त्वचा पर संक्रमण का खतरा रहता है। यदि स्वच्छता का ध्यान न रखा जाए, तो गंभीर बीमारियां, जैसे हेपेटाइटिस और एचआईवी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

इसके अलावा, टैटू से एलर्जी की समस्या भी हो सकती है। कई बार लोग टैटू बनवाने के बाद त्वचा में जलन, खुजली और सूजन की शिकायत करते हैं। महाराज जी कहते हैं कि एक सच्चे साधक को अपने शरीर का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है।

प्रमानंद जी महाराज के अनुसार, साधक के लिए साधना में एकाग्रता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यदि शरीर पर टैटू बना हो, विशेषकर धार्मिक प्रतीकों का, तो साधना के समय मन विचलित हो सकता है। जब भी हम ध्यान या पूजा करते हैं, तो मन का शुद्ध और एकाग्र होना आवश्यक होता है। यदि शरीर पर बने टैटू बार-बार हमारा ध्यान भटकाते हैं, तो साधना में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

इसके अतिरिक्त, महाराज जी यह भी कहते हैं कि जब हम शरीर पर किसी देवी-देवता का चित्र अंकित करवाते हैं, तो हमें हर समय उसकी मर्यादा का ध्यान रखना होता है। यह एक बड़ा दायित्व बन जाता है, जिसे हर समय निभाना संभव नहीं होता। इसलिए बेहतर है कि हम अपनी भक्ति को अपने आचरण और विचारों में प्रकट करें, न कि शरीर पर टैटू बनवाकर।

हिंदू धर्म में बाहरी दिखावे से अधिक आंतरिक पवित्रता को महत्व दिया गया है। प्रमानंद जी महाराज कहते हैं कि सच्ची भक्ति वह नहीं है, जो बाहरी रूप से प्रदर्शित की जाए, बल्कि वह है, जो हमारे हृदय में होती है। यदि हम वास्तव में धर्म के मार्ग पर चलना चाहते हैं, तो हमें अपने विचारों को शुद्ध करना होगा, अपने आचरण को सुधारना होगा। टैटू बनवाने से धर्म का प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि यह सिर्फ एक बाहरी सजावट बनकर रह जाती है।

प्रबोधन प्रमानंद जी महाराज कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति धार्मिक भावना से प्रेरित होकर टैटू बनवाना चाहता है, तो उसे यह समझना चाहिए कि धर्म का पालन केवल टैटू बनवाने से नहीं होता। शरीर पर देवी-देवताओं के चित्र अंकित करने से अधिक महत्वपूर्ण है अपने जीवन में उनके गुणों को अपनाना। यदि कोई फिर भी टैटू बनवाना चाहता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह शारीरिक स्वच्छता और मर्यादा का पालन करे।

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प्रबोधन प्रमानंद जी महाराज के अनुसार, हिंदू धर्म की मूल भावना आत्मा की पवित्रता और शारीरिक स्वच्छता पर आधारित है। टैटू बनवाना न तो आवश्यक है और न ही इसे भक्ति का प्रतीक माना जा सकता है। आधुनिकता के इस युग में, जहां हर कोई फैशन और दिखावे के पीछे भाग रहा है, हमें अपनी परंपराओं और मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। शरीर को सजाने की बजाय, हमें अपने मन और आत्मा को सजाने का प्रयास करना चाहिए। यही सच्ची भक्ति है, यही धर्म का मार्ग है।

टैटू बनवाने से बेहतर है कि हम अपने जीवन में ऐसे कार्य करें, जो हमारे धर्म, समाज और आत्मा के लिए लाभदायक हों। इस प्रकार हम न केवल शारीरिक बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी स्वस्थ रह सकते हैं।

हिंदुओं को टैटू बनवाना चाहिए ? प्रेमानन्द जी के विचार Tatto is good or bad ? : आज के समय में टैटू (गुदना) बनवाना एक फैशन बन चुका है। विशेष रूप से युवा वर्ग में इसकी लोकप्रियता अधिक देखने को मिलती है। कई लोग अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त करने…

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