महाराज जी मेरा मन धन की तरफ बहुत भागता है इस पर प्रेमानंद जी महाराज कह रहे है

जय जय श्री राधा

चाहिए सबकों चाहियेऐसा कोई नही है ये अर्थ प्रधान समय है

भई बिजली है तो रुपया चाहिए हर काम रूपये से हो रहा है पर धर्म को देखकर के

अधर्म से नही अधर्म से तो फिर मिट जायेगा धर्म से भी तो धन आता है

हाँ, थोड़ा ये है कि कम आएगा पर शांति से तो रहोगे चैन से अपने परिवार के साथ सो तो सकोगे

ऐसा क्या कि भागे-भागे घुमो और मारे जाओ इसलिए धर्म से चलो

जय जय श्री राधा

ऐसा क्या कि परिवार में भयानक रोग हो, ऐसी विपत्तियाँ, अशांति ऐसी बुद्धि बदल जाये, सब एक दूसरे को खाए जा रहे है

 हर व्यवस्था है पर एक दूसरे के साथ छल कपट कर रहे है एक दूसरे को देखकर सहन नही कर रहे है ये सब वृत्तियाँ अधर्म सेआती है