हनुमान जी के इस बात की चर्चा  प्रेमानंद जी महाराज कर रहे है

जय जय श्री राधा

परम ज्ञानी परम भागवत श्री हनुमान जी कह रहे है - "कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई जव तव सुमिरन भजन न होई"

जहाँ भगवद विस्मरण हुआ भजन नही हो रहा उसी समय कोई न कोई विकार, कोई न कोई राग-द्वेष, कोई न कोई मायाकृत जाल ऐसा बांध लेगा  

कि हम फिर परेशान हो जायेंगे इसलिए सतत भजन का प्रयास और भगवद आश्रय दृढ़ रखना चाहिये

हमारी सारी स्थिति आ जायेगी अगर कोई निर्विकार हो सकता है तो केवल गुरु कृपा कटाक्ष से, केवल हरि कृपा कटाक्ष से 

माना अपना प्रयास रहना चाहिये पर निर्विकारिता अपने प्रयास से नही होती अपना प्रयास अहं युक्त होता है 

जय जय श्री राधा

जहां हम कर रहे है वहां देहाभिमान होता है, ये मैंने किया, मै ऐसा करूँगा,  मै ऐसा कर लूँगा, इसमें निर्विकारिता नही होती इसमें विकार स्थिति में ही वो अपने को निर्विकार समझता है   

निर्विकारिता होती है, हार गया प्रभु के आगे बस वही खतम,क्योंकि जितने विकार है वो हरि विमुखता में है